यह मंत्र संजीवनी का पहला चरण है। इसमें साधक संजीवनी शक्ति को सीधे अपने हाथों में बुला लेते हैं। फिर उसे ब्रह्मांड में भेजते हैं।
वहां वापस बुलाकर संजीवनी शक्ति से शक्तिपात कराते हैं।
यह शक्तिपात लोगों के आभामंडल, उर्जा चक्र और कुंडली सहित सभी शक्ति केंद्रों का जागरण करने में सक्षम होता है। शक्तिपात की उर्जायें ग्रह-नक्षत्र, वास्तु, तंत्र, बाधा, प्रारब्ध, बुरी संगति और पूजा पाठ की बिगड़ी एनर्जी सहित दुख देने वाली सभी तरह की नकारात्मक उर्जाओं को सूक्ष्म शरीर से निकाल देती हैं। फिर ये दैवीय उर्जायें आभामंडल, उर्जा चक्रों, कुंडली को उर्जित करके उनका जागरण करती हैं। उसके बाद शक्तिपात की दिव्य उर्जायें व्यक्ति का सुरक्षा कवच बनाकर उसके जीवन में तन-मन-धन के सुख स्थापित करती हैं।
वहां वापस बुलाकर संजीवनी शक्ति से शक्तिपात कराते हैं।
यह शक्तिपात लोगों के आभामंडल, उर्जा चक्र और कुंडली सहित सभी शक्ति केंद्रों का जागरण करने में सक्षम होता है। शक्तिपात की उर्जायें ग्रह-नक्षत्र, वास्तु, तंत्र, बाधा, प्रारब्ध, बुरी संगति और पूजा पाठ की बिगड़ी एनर्जी सहित दुख देने वाली सभी तरह की नकारात्मक उर्जाओं को सूक्ष्म शरीर से निकाल देती हैं। फिर ये दैवीय उर्जायें आभामंडल, उर्जा चक्रों, कुंडली को उर्जित करके उनका जागरण करती हैं। उसके बाद शक्तिपात की दिव्य उर्जायें व्यक्ति का सुरक्षा कवच बनाकर उसके जीवन में तन-मन-धन के सुख स्थापित करती हैं।
इसे करने में सिर्फ कुछ मिनट का समय लगता है। किन्तु इसके परिणाम चौंकाने वाले मिलते हैं। देवी- देवता और ऋषि-मुनि इसे चलते फिरते कर लेते थे।
इसका लाभ सबको उठाना चाहिये।